Wednesday, September 4, 2019

Paryushan Parv ---.Uttam Chhama--Uttam Mardav & Uttam Arjav

*दश लक्षण धर्म एक झलक*

प्रथम दिन

*उत्तम क्षमा*

जैन धर्म में दश लक्षण पर्व पर दस दिन तक आत्मा के दश धर्मों की विशेष उपासना की जाती है इसलिए इन्हें धर्म के दशलक्षण कहते हैं । व्यवहार से स्वरूप समझने के अभिप्राय से प्रत्येक दिन क्रम से एक एक धर्म का स्वरूप समझा और समझाया जाता है ।
पहला दिन *उत्तम क्षमा* का होता है । उत्तम शब्द से तात्पर्य है सम्यग्दर्शन अर्थात् सच्चा विश्वास । यह त्रिरत्नों में पहला रत्न कहलाता है ।
मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति के लिए यह पहली शर्त है । इसके बिना मोक्ष मार्ग प्रारंभ ही नहीं होता है ।

*आत्मा में जब क्रोध रूपी विभाव का अभाव होता है तब उसका क्षमा स्वभाव प्रगट होता है ।*

हमने हमेशा से क्रोध को स्वभाव माना है यह हमारी सबसे बड़ी भूल है ।हम अक्सर कहते हैं कि अमुक व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का है । क्रोध विकार है स्वभाव नहीं । स्वभाव है क्षमा जो आत्मा का स्वाभाविक धर्म है ।

जैन परम्परा में प्रत्येक धर्म की व्याख्या मुख्यतः दो नयों (दृष्टियों ) के आधार पर की जाती है ।

अध्यात्म ( निश्चय नय ) की दृष्टि से क्षमा स्वभाव वाली आत्मा के आश्रय से पर्याय में क्रोध रूप विकार की उत्पत्ति नहीं होना ही क्षमा है और व्यवहार की दृष्टि से क्रोध का निमित्त मिलने पर भी उत्तेजित नहीं होना ,उनके प्रतिकार रूप प्रवृत्ति के न होने को ही उत्तम क्षमा कहा जाता है ।

*दूसरों की गलती की सजा खुद को देने का नाम क्रोध है ।*
हमारे क्रोध का सबसे बड़ा कारण है कि अज्ञानता के कारण हम दूसरों को अपने इष्ट या अनिष्ट का कारण मानते हैं ,दूसरों से ज्यादा अपेक्षाएं करते हैं । तत्त्वज्ञान के अभ्यास से जब हम यह समझने लगेंगे कि अपने अच्छे या बुरे के लिए हमारे खुद के किये कर्म दोषी हैं ,दूसरा तो निमित्त मात्र है , तब हमारे जीवन में क्रोध की कमी आना शुरू हो जाएगी और क्षमा स्वभाव प्रगट होना शुरू हो जाएगा ।
हम चाहें कितना भी तर्क कर लें लेकिन अंत में निष्कर्ष यही निकलता है कि क्रोध दुख रूप है और क्षमा सुख रूप ।

*आज दिल के रंजोगम चलो मिलकर साफ कर दें* ,
*जीएंगे कब तक घुटन में अब सभी को माफ कर दें* ।

*मांग लें माफी गुनाहों की जो अब तक हमने किए*,
*अब नहीं कोई शिकायत दुनिया को ये साफ कर दें* ।।

प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली
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Day 2
Aaj ka Dharam

🙏 *उत्तम मार्दव* 🙏
 *Uttam Mardava* 

Supreme Modesty, Humility
In both, character and behaviour

 *मान कशाय* का अभाव
It is victory over *ego and pride*

प्रायः सभी व्यक्तियों के अंतःकरण में यह भाव रहता है कि लोग मुझे अच्छा-भला आदमी कहें और मेरा सम्मान करें, साथ ही मेरे हर कार्य की प्रशंसा करें, मेरे पास जो ज्ञान और वैभव आदि है, वह सर्वश्रेष्ठ है, ऐसा दुनिया के सभी लोग कहें एवं स्वीकार करें। इस तरह के भाव मान-कषाय के कारण आदमी के अंतःकरण में उठते हैं। मान के वशीभूत होकर व्यक्ति जिस धरातल पर खड़ा होता है, उससे अपने आपको बहुत ऊपर समझने लगता है। इसी अहंकार के कारण आदमी पद और प्रतिष्ठा की अंधी दौड़ में शामिल हो जाता है, जो उसे अत्यंत गहरे गर्त में धकेलती है। पर्युषण पर्व का द्वितीय ‘उत्तम मार्दव’ नामक दिवस, इसी अहंकार पर विजय प्राप्त करने की कला को समझने एवं सीखने का होता है।

Wealth, good looks, reputable family or intelligence often lead to pride. Pride means to believe one to be superior to others and to look down on others. By being proud you are measuring your worth by temporary material objects. These objects will either leave you or you will be forced to leave them when you die. These eventualities will cause you unhappiness as a result of the ‘dent’ caused to your self-worth. Being humble will prevent this. Pride also leads to the influx of the bad deed or paap karmas.

*All souls are equal, none being superior or inferior to another.*




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जय जिनेन्द्र !

प्रस्तुत शृंखला मुनिवर क्षमासागरजी महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप है| पूर्ण प्रवचन "गुरुवाणी" शीर्षक से प्रकाशितपुस्तक में उपलब्ध हैं. हमेंआशा है की इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठा रहे होंगे और इसे पसंद
भी कर रहे होंगे.
इसी शृंखला में आज "उत्तम आर्जव" धर्म पर यह झलकी प्रस्तुत कर रहे हैं.

"उत्तम आर्जव"

जीवन में उलझनें दिखावे और आडम्बर की वजह से हैं . हमारी कमजोरियां जो मजबूरी की तरह हमारे जीवन में शामिल हो गयी हैं , उनको अगर हम रोज़ रोज़ देखते रहेऔर उन्हें हटाने की भावना भाते रहे तो बहुत आसानी से इन चीज़ों को अपने जीवन में घटा बढा सकते हैं . हमारे जीवन का प्रभाव आसपास के वातावरण पे भी पड़ता है.जब हमारे अंदर कठोरता आती है तो आसपास का परिवेश भी दूषित होता है इसीलिए इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए की हमारे व्यव्हारसे किसी को कष्ट न हो .

दुसरे के साथ हम रूखा व्यव्हार करेंगे , दुसरे के साथ छल कपट करेंगे , धोखा देंगे और इसमें आनंद मानेंगे तो हमारी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता दोनों ही धीरे धीरेकरके ख़तम हो जायेगी . वर्तमान में येही हो रहा है . हम कृत्रिम हो गए हैं ,दिखावा करने लगे हैं जिससे लोगों के मन में हमारे प्रति विश्वास नहीं रहा ,एक दुसरे के प्रतिसंदेह ज्यादा हो गया , यहाँ तक की परिवार में भी एक -दुसरे के प्रति स्नेह ज्यादा है -विश्वास कम है . लेकिन रिश्ते तो सब विश्वास से चलते हैं . रिश्ता चाहे भगवान् से होया संसार के व्यक्तियों से या वस्तुओं से , सभी विश्वास और श्रध्दा के बल पे ही हैं . यदि हम श्रध्दा और विश्वास बनाये रखना चाहते हैं तो हमारा फ़र्ज़ है की हम आडम्बरसे बचें , अपने मन को सरल बनाने की कोशिश करें .

सरलता के मायने हैं - इमानदारी ,सरलता के मायने हैं - स्पष्टवादिता ,सरलता के मायने हैं - उन्मुक्त ह्रदय होना , सरलता के मायने हैं - सादगी , सरलता के मायने हैं -भोलापन , संवेदनशीलता और निष्कपटता .

हमें इन बातों को धीरे धीरे अपने जीवन में लाना होगा , या फिर इनसे विरोधी जो चीज़ें हैं उनसे बचने का प्रयास करना होगा . इमानदार और सरल होने पे यह मुश्किलखड़ी हो सकती है की लोग हमें हानि पहुंचायें . यह मुश्किल थोडी बढेगी पर इसके बाद भी हमें अपनी इमानदारी बनाये रखना है . किसी ने हमको ठग लिया तो हम भी उसेठग लें यह बात गलत है . यह बात मनुष्य जीवन में सीख लेना है की -

"कबीरा आप ठगाइए ,और न ठगिये कोए

आप ठगाए सुख उपजे ,पर ठगिये दुःख होए "

कोई अपने को ठग ले तो कोई हर्ज़ नहीं पर इस बात का संतोष तो रहेगा की मैंने तो किसी को धोका नहीं दिया. एक
बार धोका देना,या छल कपट करने का परिणाम हमेंसिर्फ इस जीवन में नहीं बल्कि आगे आने वाले कई भवों तक भोगनापड़ेगा .
बाबा भारती के घोडे की बात तो सबको मालूम है . बाबा भारती से डाकू ने घोड़ा छीन लिया लेकिन बाबा भारती ने डाकू से यही कहा की -'यह बात किसी से कहना मत नहींतो लोगों का विश्वास उठ जायेगा की दीन हीन की मदद नहीं करना चाहिए '. एक बार हम धोखा दे देते हैं तो हमारी इमानदारी पर संदेह होने लगता है ,इसलिए सरलतावही है जिसमें हम इमानदार रहते हैं , दूसरों के साथ छल नहीं करते , विश्वास और प्रमाणिकता बनाये रखते हैं . हम कहीं भी हो ,हमारा ह्रदय उन्मुक्त होना चाहिए .

गुरुवर क्षमासागरजी महाराज की जय!

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