Monday, October 9, 2017

Dinner Is Always Harmful

*रात्रि-भोजन का भगवान महावीर ने निषेध क्यों किया ||*

सूर्योदय के साथ ही जीवन फैलता है। सुबह होती है, सोये हुए पक्षी जग जाते है, सोये हुए पौधे जग जाते है, फूल खिलने लगते है, पक्षी गीत गाने लगते हैं, आकाश में उड़ान शुरू हो जाती है। सारा जीवन फैलने लगता है। सूर्योदय का अर्थ है, सिर्फ सूरज का निकलना नहीं, जीवन का जागना जीवन का फैलना। सूर्यास्त का अर्थ है, जीवन का सिमटना, विश्राम में लीन हो जाना। दिन जागरण है, रात्रि निद्रा है। दिन फैलाव है, रात्रि विश्राम है। दिन श्रम है, रात्रि श्रम से वापस लौट आना है। सूर्योदय की इस घटना को समझ लें तो खयाल में आयेगा कि रात्रि—भोजन के लिए महावीर का निषेध क्यों है? क्योंकि भोजन है जीवन का फैलाव। तो सूर्योदय के साथ तो भोजन की सार्थकता है। शक्ति की जरूरत है। लेकिन सूर्यास्त के बाद भोजन की जरा भी आवश्यकता नहीं है। सूर्यास्त के बाद किया गया भोजन बाधा बनेगा, सिकुड़ाव में, विश्राम में। क्योंकि भोजन भी एक श्रम है।

आप भोजन ले लेते है तो आप सोचते हैं, काम समाप्त हो गया। गले के नीचे भोजन गया तो आप समझे कि काम समाप्त हो गया। गले तक तो काम शुरू ही नहीं होता, गले के नीचे ही काम शुरू होता है। शरीर श्रम में लीन होता है। भोजन देने का अर्थ है शरीर को भीतरी श्रम में लगा देना। भोजन देने का अर्थ है कि अब शरीर का रोया—रोया इसको पचाने में लग जायेगा।

तो अगर आपकी निद्रा क्षीण हो गयी है, अगर रात विश्राम नहीं मिलता, नींद नहीं मालूम पड़ती, स्‍वप्‍न ही स्‍वप्‍न मालूम पड़ते है, करवट ही करवट बदलनी पड़ती है, उसमें से अस्सी प्रतिशत कारण तो शरीर को दिया गया काम है जो रात में नहीं दिया जाना चाहिए। तो एक तो भोजन देने का अर्थ है, शरीर को श्रम देना। लेकिन जब सूरज उगता है तो आक्सीजन की, प्राणवायु की मात्रा बढ़ती है। प्राण वायु जरूरी है श्रम को करने के लिए। जब रात्रि आती है, सूर्य डूब जाता है तो प्राण वायु का औसत गिर जाता है हवा में। जीवन को अब कोई जरूरत नहीं है। कार्बन डाइआक्साइड़ का, कार्बन डायाक्साईड की मात्रा बढ़ जाती है जो कि विश्राम के लिए जरूरी है। जानकर आप हैरान होंगे कि आक्सिजन जरूरी है भोजन को पचाने के लिए। कार्बन डायक्साईड के साथ भोजन मुश्किल से पचेगा।

मनोवैज्ञानिक अब कहते है कि हमारे अधिकतर दुख स्वप्‍नों का कारण हमारे पेट में पड़ा हुआ भोजन है। हमारी निद्रा की जो अस्त—व्यस्तता है, अराजकता है, उसका कारण पेट में पड़ा हुआ भोजन है। आपके सपने अधिक मात्रा में आपके भोजन से पैदा हुए है। आपका पेट परेशान है। काम में लीन है। दिन भर चुक गया। काम का समय बीत गया और अब भी आपका पेट काम में लीन है। बाकी हम तो अदभुत लोग हैं। हमारा असली भोजन रात में होता है, बाकी तो दिन भर हम काम चला लेते है। जो असली भोजन है, बडा भोजन डिनर, वह हम रात में लेते हैं। उससे ज्यादा दुष्टता शरीर के साथ दूसरी नहीं हो सकती।

इसलिए अगर महावीर ने रात्रि भोजन को हिंसा कहां है तो मै कहता हूं कीड़े—मकोड़ों के मरने के कारण नहीं, अपने साथ हिंसा करने के कारण आत्म—हिंसा है। आप अपने शरीर के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं। स्व—अवैज्ञानिक है। भोजन की जरूरत है सुबह, सूर्य के उगने के साथ। जीवन की आवश्यकता है, शक्ति की आवश्यकता है। श्रम होगा, शक्ति चाहिए। विश्राम होगा, शक्ति नहीं चाहिए। पेट सांझ होते—होते, होते—होते मुक्त हो जाये भोजन से, तो रात्रि शांत होगी, मौन होगी, गहरी होगी। निद्रा एक सुख होगी और सुबह आप ताजे उठेंगे, रात्रि भर भी आपके पेट को श्रम करना पड़े तो सुबह आप थके मांदे उठेंगे।

इसके और भी गहरे कारण हैं। आपने खयाल किया होगा, जैसे ही पेट में भोजन पड़ जाता है वैसे ही आपका मस्तिष्क ढीला हो जाता है। इसलिए भोजन के बाद नींद सताने लगती है। लगता है लेट जाओ। लेट जाने का मतलब यह है कि कुछ मत करो अब। क्यों? क्योंकि सारी ऊर्जा शरीर की पेट को पचाने के लिए दौड़ जाती है। मस्तिष्क बहुत दूर है पेट से। जैसे ही पेट में भोजन पड़ता है, मस्तिष्क की सारी ऊर्जा पेट में पचाने को आ जाती है। ये वैज्ञानिक तथ्य है। इसलिए आंख झपकने लगती है और नींद मालूम होने लगती है। इसलिए उपवासे आदमी को रात में नींद नहीं आती। दिन भर उपवास किया हो तो रात में नींद नहीं आती। क्योंकि सारी ऊर्जा मस्तिष्क की तरफ दौड़ती रहती है तो नींद नहीं आ पाती। इसलिए, जैसे ही आप पेट भर लेते हैं तत्काल नींद मालूम होने लगती है। यह भरे पेट में नींद इसलिए मालूम होती है कि मस्तिष्क को जो ऊर्जा दी गयी थी, वह पेट ने वापस ले ली।

पेट जड़ है। पेट पहली जरूरत है। मस्तिष्क विलास है, लक्ज़री है। जब पेट के पास ज्यादा ऊर्जा होती है तब वह मस्तिष्क को दे देता है। नहीं तो पेट में ही मस्तिष्क की ऊर्जा घूमती रहती है।

महावीर ने कहां है, दिन है श्रम, रात्रि है विश्राम, ध्यान भी है विश्राम। इसलिए पूरी रात्रि ध्यान बन सकती है, अगर थोड़ा—सा शरीर के साथ समझ का उपयोग किया जाये। अगर रात्रि पेट में भोजन पड़ा है तो रात्रि ध्यान नहीं बन सकती, निद्रा ही रह जाti hai



What is Karam? How it works?

अनजाने कर्म का फल

VERY INTERESTING

एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ।
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था ।
उसी समय एक चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ।
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से ज़हर निकाला ।
तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था, उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बूँदें खाने में गिर गई ।
किसी को कुछ पता नहीं चला ।
फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी ।
अब जब राजा को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला तो ब्रह्म-हत्या होने से उसे बहुत दुख हुआ ।

ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....

बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....

फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ।
उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया पर रास्ता बताने के साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि "देखो भाई ....जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में जहर देकर मार देता है ।"

बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे, उसी समय यमराज ने फैसला (decision) ले लिया कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ।

यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों ??
जब कि उन मृत ब्राह्मणों की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नहीं थी ।
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो, जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं तब उसे बड़ा आनन्द मिलता हैं । पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला .... ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ।
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस महिला को जरूर आनन्द मिला । इसलिये राजा के उस अनजाने पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ।

बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति जब किसी दूसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा उस बुराई करने वाले के खाते में भी डाल दिया जाता हैं ।

अक्सर हम जीवन में सोचते हैं कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप नहीं किया, फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??

ये कष्ट और कहीं से नहीं, बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं जो बुराई करते ही हमारे खाते में ट्रांसफर हो जाता हैं ....

यही हे र्कमो का फल


ब्रह्मकुमारी शिवानी के अनमोल विचार | 
1. एक छोटी सी लड़ाई से हम अपना प्यार करते हैं इससे तो अच्छा हैं की प्यार से हम अपनी लड़ाई खत्मः करे।
2. व्यर्थ कार्य जीवन को थका देता हैं, रचनात्मक कार्य सुख और तेज बढ़ा देता हैं।
3. स्वयं के प्रति स्वमान और प्रभु के प्रति प्रेमभाव हो तो दूसरों को आदर देना आसान हो जाता हैं।
4. गलतफहमी हमेशा रिश्ते जोड़ने से पहले ही तोड़ देती हैं।
5. किसी का ख़राब काम देखकर क्रोध आना मामूली बात हैं लेकिन क्रोध के बजाय उसके लिये दुआ निकले यह महान आत्मा के लक्षण होते हैं।
6. खुश रहने के लिये हमें किसी वजह की जरुरत नहीं होनी चाहिये क्योकि हमसे हमरी खुशी की वजह किसी भी वक्त छीन ली जा सकती हैं।
7. दूसरों के नजरो में अच्छा बनने से पहले खुद के नजरों में अच्छा बनों।
8. हमेशा याद रखो की अगर कोई आपके साथ बुरा करे तो इसका मतलब ये नहीं की आप भी उसके साथ बुरा करो अगर आप दुसरो की गलती होते हुये भी माफ़ कर देते हैं तो वास्तव आप उससे बड़े हैं।
9. ज्यादा बोझ लेकर चलने वाले हमेशा डूब जाते है हैं, फिर बोझ चाहे सामान का हो या अभिमान का हो।
10. खुश रहने का मतलब ये नहीं सब कुछ ठीक हैं इसका मतलब यह हैं की आपने अपने दुखो उठकर जिना सिख लिया हैं।
11. दुनिया में हम जो दूसरों को देते हैं वही हमारे पास लौटकर आता हैं, आप दूसरों को दुआयें देंगे तो वो किसी न किसी रूप से आपके पास लौटकर जरुर आयेंगी।
यदि रोज मनन करें तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होगा। अगर किसी बच्चे को उपहार न दिया जाए तो वो कुछ देर रोयेगा मगर संस्कार ना दिए जाएं तो वो जीवन भर रोयेगा…




Good read:

● At 20 years "foreign country" and "hometown" are the same. (No matter where you are, you can always adapt)

● At 30 years, "night time" and "daytime" are the same. (A few days of no sleep, does not matter)

● At 40 years, "highly educated" and "less educated" are the same. (Less educated people may even earn more money) 

● At 50 years, "beauty" and "ugly" are the same. (No matter how pretty you are, at this age, wrinkles, dark spots, etc. can no more be hidden.)

● At 60 years, "high position" and "low position" are the same. (After retirement, even a peon will avoid looking at his boss)

● At 70 years, "big house" and "small house" are the same. (Joints degeneration, hard to move, only require a little space to sit .)

● At 80 years, "have money" and "no money" are the same. (Even when you want to spend money, you don't know where to spend)

● At 90 years, "Sleeping" and "waking up" are the same. (After you wake up, you still don't know what to do)

Take life easy, there are no mysteries to be solved.

In the long run, we'll all be the same.
So forget all tensions of life & enjoy..

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