Sunday, June 25, 2017

Know About Jain Gotra

दिगम्बर जैन समाज का गोत्रानुसार इतिहास एवं परिचय

1.           साह गोत्र

      खण्डेलवाल दिगम्बर जैन समाज के 84 गोत्रों में साह गोत्र शाही गोत्र है। यह खण्डेला के महाराज खण्डेलगिरि का गोत्र है जो उन्हें जैन धर्म में दीक्षित करने तथा अहिंसा धर्म के परिपालन की प्रतिज्ञा लेने के पश्चात् दिया गया था। उन्हें खण्डेलवाल जैन जाति का प्रथम महापुरुष  होने तथा साह गोत्रीय कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे चौहान राजपूत थे। सोम उनका वंश था। खण्डेला उनका नगर एवं चक्रेश्वरी देवी उनकी कुल देवी थी। उनको विक्रम सम्वत् 102 में दीक्षित किया गया।

2.            पापडीवाल

       वंश सोम, कुल चौहान, कुल देवी चक्रेश्वरी, ग्राम पापडे (पापडदा)। कोई सूरजमाता को भी कुल देवी मानते हैं।

       सर्वप्रथम ठाकुर सोमसिंह जी ने संवत् 104 में श्रावक व्रत ग्रहण किये तत्पश्चात् उनके परिवार का गोत्र पापडीवाल रखा गया। इस गोत्र में कितनी ही महान् विभूतियाँ हुई।

3.           भांवसा

       खण्डेलवाल जैनों में भावंसा गोत्र अपनी जनसंख्या, सामाजिक एवं साहित्यिक सेवा के लिये पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त गोत्र है। भावंसा गोत्र के दूसरे नाम भौंसा, बडजात्या, गोदीका एवं मालावत हैं, जो स्थानीय कारणों से उस नाम के धारी बन गये हैं। इस गोत्र के प्रथम श्रावक भांवसिंह जी भावसे ग्राम के जागीरदार थे। सोमवंश था तथा चौहान कुल था। चक्रेश्वरी देवी इनकी कुल देवी मानी जाती है। भावंसा गोत्र होने के कारण जब इनको बोलचाल में भैंसा कहा जाने लगा तो इन्होने इसका प्रतिवाद किया और कहा कि वे राज परिवार के हैं। इसलिये उनकी जाति भी बडी है। इसके पश्चात् भांवसा गोत्र को बडजात्या भी कहा जाने लगा। संवत् 1052 में लाडनूं  में सोनपाल जी सौंठल जी बडजात्य ने पंच कल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न करायी थी।

       संवत् 1444 में धर्मचन्द भांवसा चाकसू वालों की बहू चांदवाडों की बेटी थी। इसने अपने लडके का लालन पालन शहर में आकर किया। इसलिये उनको गोदीका कहा जाने लगा। इसी तरह संवत् 1658 में संघई माला जी भावंसा बड़े पराक्रमी श्रावक हुए थे इसलिये उनके वंश को मालावत कहा जाने लगा। जयपुर में मालावतों के बहुत से परिवार हैं। जयपुर में बगडा भी भांवसा गोत्रीय हैं जबकि अन्यत्र कासलीवाल, लुहाडिया को बगडा कहा जाता है।

4.           पहाड्या / पहाडिया

       गोत्र पहाडिया / वंश सोम / कुल चौहान / कुलदेवी  चक्रेश्वरी ग्राम-पहाडी मूल पुरुष-पूरणचन्दजी अपर नाम पहाडसिंह जी। प्रतिष्ठा पाठ के अनुसार संवत् 182 में इस गोत्र के श्री पोखर जी पहाड्या ने खण्डेले में पंचकल्याणक प्रतिष्ठाचार्य भट्टारक यशकीर्ति थे।

5.           पांड्या

       गोत्र-पांड्या/ वंश-सोम/ कुल चौहान/ कुलदेवी-चक्रेश्वरी। ग्राम का नाम- झीवरै।

       पहिले इस गोत्र का नाम झीथरया था लेकिन बाद में यह केवल पांडया ही रह गया। इसका मूल कारण इस गोत्र की उत्पत्ति झीथरया ग्राम में हुई थी तथा इसके प्रथम पुरुष झाझाराम जी थे, जिन्होने संवत् 104 में आचार्य जिनसेन से श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

       संवत् 1211 में मारोठ के  शासक रामसिंह चंदेल थे। उनके पश्चात् महासिंह जी गौड ने सत्ता प्राई। उनके बाद रघुनाथ सिंह जी मेरक्या ने सत्ता प्राप्त की। इनके जाबूशाह जी पांड्या कामदार हुए। उनको शाह की पदवी दी गई। तब से मारोठ के पांड्या शाह पांड्या कहलाते हैं।

6.           छाबड़ा

         इस गोत्र का प्राचीन नाम छाबड़ा या साहबाडा भी मिलता है। प्रशस्तियों में भी छाबड़ा के स्थान पर साहबड़ा गोत्र का प्रयोग किया गया है। छाबडा गोत्र का वंश सोम, कुल चौहान, देवी चक्रेश्वरी, ग्राम का नाम सहाबड़ी है। इस गोत्र के मूल पुरुष का नाम साहिमल जी है।

7.           गदिया

         इस गोत्र का नाम गदैया एवं गदहया भी प्रसिद्ध है। इसका वंश सूर्य है, कुल सोलंकी, कुल देवी आमणि है। लेकिन क प्रति में इस गोत्र का वंश चौहान एवं कुल देवी चक्रेश्वरी दी गई है। यह गोत्र प्रथम 14 गोत्रों में सम्मिलित है। बुद्धि विलास में भी सोलंकी कुल एवं आमिणी देवी गिनायी गयी है। इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर राजसिमह है जिन्होने सर्वप्रथम श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे।

चूडीवाल एवं गिरधरवाल गोत्र भी इसी के दूसरे नाम है।

8.           चांदुवाड

         चांदुवाड गोत्र की उत्पत्ति चंदवाडू गांव से हुई। इस गोत्र का वंश चंदेल एवं कुलदेवी मातणि मानि गयी है। पं. बख्तराम ने अपने बुद्धि विलास में चांदुवाड गोत्र के दो भेद किये है। एक सोमवंशी एवं दूसरा कुरुवंशी। लेकिन मातणि कुलदेवी दोनों की एक ही है।

9.           सोनी

         सोनी गोत्रीय श्रावकों का वंश सोरई/सूर्य, कुल सोलंकी, कुलदेवी आमणि ग्राम सोहनै/सोनपुर एवं मूल पुरुष ठाकर जैतसिंह के पुत्र शिवसिंह माने जाते हैं जिन्होंने सर्व प्रथम श्रावक धर्म स्वीकार किया था।

           इस गोत्र का प्राचीन नाम सोहनी था लेकिन बाद में सोनी कहा जाने लगा।

10.     पाटनी

         गोत्र-पाटनी, वंश सोम, कुल तंवर सोलंकी/कुल देवी-आमणि। प्रथम पुरुष-पृथ्वीराजसिंह तंवर। बाहण बलध लादे तो दुखी होय गाय बेचे तो दुखी होय। ग्राम-पाटणि। पाटनी गोत्र-कोठारी, तुरक्या पाटनी, खिन्दूका, बेगस्या, सागाका, मुशरफ, इन्डिया बैंक वाले भी पाटनी हैं। वैसे पुर पट्टन से पाटनी गोत्र वाले कहलाते हैं।

           भाट के अनुसार पाटनी गोत्र के श्रावक देवी की पूजन अष्टमी से दशमी तक करते थे। देवी की सवारी सिंह की थी।

           खिन्दूका पाटनी गोत्र का ही दूसरा नाम है।

11.     भूंछ /भौंच

         इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर भोजराज थे जिन्होंने सर्वप्रथम श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

12-13. बज

         बज गोत्र का उत्पत्ति स्थान खण्डेला ही माना गया है तथा एक की कुल देवी आमणि तथा दूसरे को मोहाणी माना गयी है।

14. निगोत्या

           गोत्र निगोत्या/ वंश गौड/ जन्म ग्राम-निगोत्या/ कुल देवी नांदणि। ख प्रति में इस गोत्र का वंश छपा मिलता है। ग प्रति में चौहाण वंश मिलता है। बुद्धि विलास में निगोत्या गोत्र की कुल देवी हेमा मानी गयी है।

15. लौंहग्या

           गोत्र लौंहग्या, लोंग्या अथवा लुंग्या। ये सूर्य वंशी (सोरई) हैं। कुल देवी आमणि एवं उत्पत्ति स्थान लहुंगे माना जाता है। ख प्रति में इस गोत्र का सोलंकी वंश बतलाया गया है। बुद्धि विलास में भी इसी मत की पुष्टि की गयी है।

16. दगड़ा/ दगड्या

           गोत्र दगड्या अथवा दगडा /वंश सोरई /कुल देवी आमणि। उत्पत्ति स्थान दगडोदे।

17. रावत्या रावत

           रावत्या अथवा रावत गोत्रीय श्रावकों का वंश ठीमर सोम, ग्राम रावत्ये एवं कुल देवी औरल है। रावत गोत्र के सम्बन्ध में कोई अन्य सामग्री नहीं मिलती। ख प्रति में इस गोत्र का पामेचा वंश माना है।

18. रारा

           रारा गोत्र/ वंश ठीमर सोम/ ग्राम रीरो/ कुल देवी औरल।

           ख प्रति में बख्तराम साह ने रारा गोत्र का पामेचा वंश माना है।

           रारा गोत्र के मूल पुरुष राजसिंह जी थे।

19. नृपत्या /वरपत्या

         वंश सोम/ कुल सोरई /कुल देवी आमणि /ग्राम नरपते। मूल पुरुष हरिसिंह जी।

           ख प्रति के अनुसार इस गोत्र का वंश यादव, कुल देवी रोहिणी है। इस गोत्र में सर्वप्रथम संवत् 110 में हरिसिंहजी ने श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

20. राउंका रांवका

         गोत्र रांवका/ कुल ठीमर सोम /कुल देवी औरलि।

           उत्पत्ति नगर राउंको /रीरो।

21. मोदी

         वंश सोम, कुल ठीमर सोम, ग्राम का नामा मोघा, कुल देवी अमरलि।

22. मोठ्या

           वंश ठीमर ग्राम मोठे देवी औरलि।

23. बाकलीवाल

           गोत्र बाकलीवाल, वंश मोहिल, कुल देवी जीणि, उत्पत्ति नगर बाकली अथवा बाकुले।

24. कासलीवाल

           कासलीवाल गोत्र का वंश सोम है। कुल मोहिल है। कुल देवी जिणि एवं उत्पत्ति नगर कासली है जो खंडेला राज्य का ग्राम था। कहीं-कहीं बगडा, संबलावत उस गोत्र के उपगोत्र हैं। इस गोत्र के प्रथम पुरुष जयसराज मोहिल थे जिन्हें कासली ग्राम के शासक एवं जैन धर्म में दीक्षित होने का गौरव प्राप्त है।

25. अजमेरा

         गोत्र-अजमेरा/उत्पत्ति स्थान अजमेरा/वंश-गौड/कुलदेवी-नांदाणि/मूलपुरुष उग्रवंशी राजा अक्षयमल।

26. पाटोदी                              

         गोत्र-पाटोदी/वंश तुवंर/कुल-गहलोत/कुलदेवी-पदमावती/प्रथम पुरुष-ठाकुर पदमसिंह।

27. पापल्या

         गोत्र-पापल्या/वंश-सोरई/कुलदेवी-आमणि/ग्राम-पापले मूल पुरुष ठाकुर पृथ्वीराज /जनश्रुति के अनुसार इन्ही के वंशधरों ने बैराठ में जिन मन्दिर का निर्माण करवायक था।

28. सोगानी

         गोत्र-सोगानी/वंश-सूर्यवंश-कोटेचा/कुलदेवी-कान्हड/ग्राम-सौगाणी/ मूल पुरुष ठाकुर शिवाराज सिंह।

29. बोहरा

         गोत्र बोहरा, वंश सोढा, कुल देवी सैतलि, ग्राम बोहरे।

30. लुहाडिया

         गोत्र लुहाडिया, कुरु वंश, कुल मेरठी, कुल देवी लोसिल माता।

           इस गोत्र के बगडा एवं संघई बैंक वाले भी लुहाडिया होते हैं। इस गोत्र के प्रथम महापुरुष ठाकुर लालसिंह जी थे जिन्होंने खण्डेला में संवत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किया था।

31. वैद गोत्र

         वैद गोत्र, वंश सोम, कुल यादव, कुल देवी आमणि, ग्राम पावडे।

           इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर बिदरसिंह जी थे। जिन्होने संवत् 110 वैशाख सुदी 13 को श्रावक व्रत ग्रहण किया था।

32. झांझरी

         झांझरी गोत्र, वंश-कुरु वंश, कुल-कूरम (कछवाहा), कुल देवी जमवाय, ग्राम झांझरे अथवा झींझर।

           इस गोत्र के प्रथम जैतसिंह थे। जिन्होंने संवत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

33. गंगवाल

         गोत्र गंगवाल, वश-कुरु वंश, कुलृकूरम(कछवाहा), कुल देवी जमवाय, ग्राम गंगवानी।

           अपर नाम-कांटीवाल, मूथा, गढवोल गंगवाल।

           मूल पुरुष—गोरधनसिंह गंगवानी इस गोत्र के प्रथम महापुरुष थे। इन्होने संवत् 110 के भादवा सुदी 13 को श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

34. सेठी

         गोत्र सेठी, वंश-कुरु वंश, कुल-मोरठ सोम, उत्पत्ति स्थान-सेठोलाव।

           सेठी गोत्र के मूल पुरुष सौभाग्यसिंह जी थे जो हरियावसिंह जी के पुत्र थे। जिन्होंने श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

35. राजहंस्या

         इस गोत्र का नाम राजहंस भी मिलता है। इसका सोम वंश है। कुल सोढा है। कुल देवी सकराय माता है। उत्पत्ति स्थान राजहंस ग्राम है।

36. अहंकारया

         अहंकारया गोत्र का वंश सोम है। कुल सोढा है। कुल देवी सकराय है। दूसरे इतिहास लेखकों ने इस गोत्र की कुल देवी सरस्वती  माना है।

37. काला

         गोत्र काला, वंश-कुरु वंश, कुल-ठीमर, कुल-देवी लाहाणी, ग्राम कोलाव।

           इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर कल्याणसिंह जी थे। इन्होंने जिनसेनचार्य के पास श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

38. गोधा

         गोत्र-गोधा, वंश-सोम, कुल-गौड, कुल देवी-नादणि, ग्राम-गोधाणी।

           इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर गिरनेर थे। जिन्होंने सर्वप्रथम श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

           सम्वत् 1204 से गोधा ठोल्या एक ही गोत्र के दो नाम पड़ गये।

39. टोंग्या

         गोत्र-टोंग्या, वंश-सोम, कुल-पवार, कुल देवी-चांवड (जिनी), ग्राम-टोंगों। मूल पुरुष विरदसिंह। इन्होने सम्वत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किये।

40. अनोपडा

         गोत्र-अनोपडा, वंश-इक्ष्वाकु, कुल-चन्देला, कुल देवी-मातणि, ग्राम-अनोपडे, मूल पुरुष कनकसिंह जी। इस गोत्र का दूसरा नाम नोपडा भी मिलता है।

41. विनायक्या

         इस गोत्र के विनायक्या एवं बिन्दाय्या दोनें ही नाम मिलते हैं। इस गोत्र का वंश सोम वंश है। कुल गहलोत एवं कुल देवी चौथ है। ग्राम विनायका/ विनायके है।

42. चौधरी

         84 गोत्रों में चौधरी भी एक गोत्र है। वैसे चौधरी बैंक भी है। चौधरी गोत्र का कुल-तुवंर, वंश-कुरु, कुल देवी-पदमावती। आदि पुरुष ठाकुर हरचन्द जी थे।

43. पोटल्या

         गोत्र पोटल्या, वंश सोम, कुल गहलोत, कुल देवी चौथी, ग्राम चन्देल। मूल पुरुष रामसिंह थे। इन्होने संवत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

44. कटारिया / कटारया

         वंश-इक्ष्वाकु, कुल-कूर्म(कछवाहा), कुल देवी-जमवाय, ग्राम-कटारा। मूल पुरुष ठाकुर कल्याणसिंह जी है। न्होनें श्रावक व्रत ग्रहण किये ते।

45. निगद्या

         गोत्र निगद्या अथवा निगेदिया। वंश-सोरई। कुलदेवी नांदणि। उत्पत्ति स्थान नगद्या। ख प्रति में इस गोत्र का वंश गौड माना गया है।

46-47. विलाला

         विलाला गोत्र दो प्रकार का है-

1.   सोम वंश, किल ठीमर, देवी-ओरलि, ग्राम-बडी विलाली।

2.   कुरु वंशी, कुल देवी-सोनिल, ग्राम-विलाली छोटी, मूल पुरुष ठाकुर वीरसिंह।

48. बम्ब

           गोत्र-बम्ब, इस गोत्र का सोम वंश, सोढा कुल एवं कुल देवी-सकराय है।

49.  हलद्या / हलदेनिया

         इस गोत्र का प्रचलित नाम हलदेनिया है। ये सोमवंशी हैं। कुल मोहिल एवं  कुल देवी जीण है।

50. क्षेत्रपाल्या

         गोत्र-श्रेत्रपाल्या अथवा श्रेत्रपालिया, सोम वंश, दुजि कुल एवं कुल देवी हेमा है। इस गोत्र के भी बहुल कम परिवार मिलते हैं।

51. दुकड्या                                                                                

         यह गोत्र भी 84 गोत्रों में है। इस गोत्र की कुल देवी हेमा है। वंश दुजिल एवं ग्राम का नाम द्कडे है।

52. दोशी

         दोशी गोत्र का वंश राठौड़ है। कुल देवी जमवाय तथा उत्पत्ति स्थान सेसेणि नगर माना जाता है। इस गोत्र के नाथूराम दोशी हुए।

53. भसावड़या

         भसावड्या कुरु वंशी गोत्र है। इसकी कुल देवी सोनिल है तथा मूल नगर भसावड है।

54. भांगड्या

         भांगड्या गोत्र भी प्रचलित गौत्र नही हैं। इसका वंश ठीमर तथा कुल देवी ओरल है। भांगडे नगर इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है।

55. भूवाल

         भूवाल गोत्र का कछवाहा वंश है। जमवाय इसकी कुल देवी है तथा भूवाल इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है।

56. सरवाड्या

         गौड वंश का सरावाड्या गोत्र है। इसकी कुल देवी नादणि है तथा उत्पत्ति स्थान सरवाडे है।

57. गोतवंशी

         यह गोत्र भी 84 गोत्रों में से एक गोत्र है। इस गोत्र का दुजिल वंश है। हेमां कुल देवी है तथा गोतडी नामक ग्राम इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है। लेकिन बख्तराम साह ने इस प्रकार के किसी  गोत्र का उल्लेख नहीं किया है।

58. चोवारया

         प्रस्तुत गोत्र को 84 गोत्रों में गिनाया गया है। इस गोत्र का चौहान वंश, चक्रेश्वरी देवी एवं चौबारे उत्पत्ति स्थान है। बख्तराम साह ने इस गोत्र को 84 गोत्रों में नहीं गिनाया है।

59. गींदोड्या

         इस गोत्र की उत्पत्ति स्थान गिन्दोडी है। इसकी कुल देवी श्रीदेवी है। इसका सोढा वंश माना जाता है। गींदोड्या गोत्र के परिवार राजस्थान अथवा अन्य किसी प्रदेश में रहते हों इसका जानकारी नही मिलती।

60. छाहड

           इस गोत्र का नांदेचा कुल है। कुरु वंश है। देवी सोनिल तथा उत्पत्ति ग्राम छाहेड माना जाता है।

61. कोकराज

         इस गोत्र का नांदेचा कुल है। कुरु वंश का यह गोत्र है तथा इस गोत्र की देवी सोनिल है। इसका उत्पत्ति स्थान कोकरजे है। इस गोक्ष के परिवार भी सम्भवतः नहीं है। श्री राजमल बडजात्या ने इस गोत्र का नाम कोकणराज्या लिखा है।

62. जुगराज्या

         उत्पत्ति नगर जगराजै को छोड़ कर कुल वंश एवं कुलदेवी वे ही हैं जो कोकराज गोत्र की मानी जाती है।

63. मूलराज

         इस गोत्र के कुल का नाम मोहिल है। कुरु वंश है। सोनिल कुल देवी है तथा उत्पत्ति स्थान मूलराज्ये है। बख्तराम साह भी उक्त मत के समर्थक है।

64. लटीवाल

         इस गोत्र के कुल का नाम मोहिल है। कुल देवी का नाम श्रीदेवी एवं सोढा इस गोत्र का वंश है। लटवे इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है।

65. बोरखण्डया

         इस गोत्र की कुल देवी हेमा मानी गयी है। इसका वंश दुजिल है। इसका गहलोत कुल माना है तथा उत्पत्ति स्थान बोरखण्डे है।

66. कुलभण्या

         इस गोत्र की कुल देवी हेमा है। इसका दुजिल वंश तथा कुलभण्ये उत्पत्ति स्थान का नाम है। इस गोत्र के परिवार भी प्रायः नही मिलते है।

67. मोलसरया

         यह सोढा वंशीय गोत्र है। कुल देवी का नाम सकराय है तथा उत्पति स्थान मलसरे है। बख्तराम साह ने इस गोत्र का चन्देल वंश तथा कुल देवी का नाम मातणि लिखा है।

68. लोहट

         इस गोत्र का नाम लावट भी मिलता है। बख्तराम साह ने भी लावट नाम लिखा है। इस गोत्र का मेरिठ वंश का नाम है तथा कुल देवी लोसिल माता है। उत्पत्ति स्थान लोहटे लिखा है.

69. नरपोल्या

         नरपोल्या गोत्र का वंश गौड है। कुलदेवी नांदणि है तथा उत्पत्ति स्थान नरपोले है। बख्तराम साह ने इस गोत्र के कुल का नाम दहरया लिखा है।

           नरपोल्या निरगंधा गोत, कुल है दहरया और नहि होत।

70. भडसाली

         इस गोत्र की कुलदेवी का नाम आमणि है। इसका सोम वंश है। सोलंकी कुल का नाम है। उत्पत्ति नगर का नाम भडसाले है। इस गोत्र के सम्बन्ध में इतिहास लेखक एक मत नही है। घ प्रति में इस गोत्र को भडसाली बज लिखा है तथा इसको बज गोत्र से जोडा है लेकिन बख्तराम साह ने इस गोत्र की यादव कुल, रोहिणी कुलदेवी माना है।

71. वैनाडा

         गोत्र-वैनाडा। वंश-ठीमर। कुलदेवी ओरल। उत्पत्ति स्थान-बनावट।

           इस गोत्र का उल्लेख सभी इतिहासकारों ने  नहो किया है। लेकिन दौसा के बीसपंथी मन्दिर में एक नंदीश्वर की धातु की मूर्ति है जो संवत् 1660 फागुन बुदी 5 गुरुवार के दिन माखूण में वैनाडा गोलीय सा भोजा उसके पुत्र ऊदा, तुपुत्र हेमा, नागा चाला, सांवल राम, दामोदर माता ठाकुरी दादी रुकमा ने उसकी प्रतिष्ठा की थी।

           वैनाडा गोत्रीय परिवार जयपुर, आगरा, लालसेट आदि नगरों में मिलते हैं।

72. कडवागर

         इस गोत्र का उत्पत्ति नगर कडवागरी है। इसका वंश सोम है कुल गौड है तथा कुलदेवी का नाम नांदणी है। बख्तराम साह ने कुलदेवी का नाम नांदिल लिखा है तथा कुल का नाम पडिहार माना है।

73. सृपत्या

         इस गोत्र का नाम सरपत्या एवं सुरपत्या भी मिलता है। इस गोत्र का मोहिल कुल है तथा कुल देवी जीणि माता है। इसका उत्पत्ति स्थान सुरपति नगर है। इस गोत्र के परिवारों के बारे में कोई जानकारी नही मिलती है।

74. दरडोद्या

         गोत्र दरडोद्या, वंश सोम, कुल चौहान, कुल देवी चक्रेश्वरी ग्राम-दरडे, मूल पुरुष राजा दमतारिजी।

75. पिंगुल्या

         गोत्र पिंगुल्या, वंश-सोम, कुल चौहान, कुलदेवी-चक्रेश्वरी, ग्राम का नाम-पिंगुल।

76. भुलाण्यां

         गोत्र-भुलाण्यां, भुलणा, वंश-सोम, कुल चौहान, कुलदेवी-चक्रेश्वरी, ग्राम का नाम-भूलणा।

           इस गोत्र के प्रथम पुरुष भूघरमल जी थे। जो भूलणा ग्राम के ठाकुर थे।

77. वनमाली

         इसका दूसरा नाम वनमाल्या भी मिलता है। क, ग, एवं घ प्रति में इस गोत्र के वंश का नाम चौहान एवं कुल देवी चक्रेश्वरी दिया हुआ है। इस गोत्र का उदगम बनमाले ग्राम से हुआ था। ख प्रति से इस वंश का गोत्र यादव एवं कुल देवी रोहिणी लिखा है। पं. बख्तराम साह ने भी वनमाली गोत्र का यादव कुल एवं रोहिणी देवी लिखा है।

78. पीतल्या

         गोत्र-पीतल्या, वंश-सोम, कुल चौहाण, कुल देवी चक्रेश्वरी ग्राम का नाम-पीतले। पं. बख्तराम ने बुद्ध विलास में इसी बात का समर्थन किया है।

79. अरडक

         अरडक गोत्र की गिनती प्रारम्भ के 14 गोत्रों में की गयी है। इसका वंश सोम, कुल चौहान, कुलदेवी चक्रेश्वरी है। ख प्रति में इस गोत्र के इतिहास में इस गोत्र के मूल पुरुष का नाम श्री अजबसिंह जी गिनाया गया है। साथ में यह भी लिखा है कि (आठे चौदासि चाकी फरेजे नहीं। चाकी को अपमान करे नही।)

80. चिरकन्या / चिरकनां

         यह गोत्र आचार्य जिनसेन द्वारा निर्धारित 14 गोत्रों में से अन्तिम गोत्र माना गया है। इसके कुल वंश, देवी वही है जो इस समूह के अन्य गोत्रों की है। लेकिन बुद्धिविलास में चिरकन्या गोत्र की गिनती इक्ष्वाकु वंश में की गयी है और चक्रेश्वरी के स्थान पर नांदिल देवी को इस गोत्र की देवी बतलाया है।

81. जलवाण्या

         वंश-सोम/कुल-कुछवाहा/नगर-जलवाणे/जलभणे कुलदेवी-जमवाय। इस गोत्र का दूसरा नाम जलभाण्या भी मिलता है। इस गोत्र के परिवार भी संभवत/ कहीं नहीं मिलते हैं।

82. सांभरया

         वंश-सोम/कुल-चौहान/नगर-सांभरि/देवी-चक्रेशवरी/ जोबनेर के  मंदिर वाली पाण्डुलिपि में कुलदेवी का नाम सांभराय लिखा है। यदि प्रस्तुत सांभर ही इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है तो इससे इतिहास के कितने ही अध खुले पृष्ट खुल जावेंगे तथा खण्डेला की सीमा सांभर तक आ जावेगी।

83. राजभद्र

         गोत्र-राजभद्र/ वंश-सोम/कुल-चौहाण/ नगर-स्थान राजभद्र/ कुलदेवी-चक्रेश्नरी/ प्रथम पुरुष-रामसिंह।

84. साखूया

         गोत्र-साखूण्या। वेश-सोढा। उत्पत्ति स्थान साखूणौ अथवा साखूणि। कुलदेवी सकराय। ख प्रति के अनुसार इस गोत्र केवेश का नाम सांखुला है। भाट के अनुसार इस गोत्र की कुल देवी आमना है। इस गोत्र के प्रथम पुरुष ठाकुर श्याम सिंह जी माने जाते है जिन्होनें संवत् 990 में श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

84 गोत्रों के अतिरिक्त गोत्र

         उक्त 84 गोत्रों के अतिरिक्त, खण्डेलवाल जैन समाज के ही निम्न गोत्रों का उल्लेख ग्रंथ प्रशस्तियों, मूर्ति लेखों में और मिलता है-

        साधु   साधु गोत्र, ठाकुल्यावाल, मेलूका, नायक, खाटड्या, सरस्वती, कुककुरा, वोठवोड, कोटरावकल, भतावड्या, बीजुण, कांधावाल, रिन्धिया एवं सांगरियादिगम्बर जैन समाज का गोत्रानुसार इतिहास एवं परिचय

*1.      साह (शाह) गोत्र*

      खण्डेलवाल दिगम्बर जैन समाज के 84 गोत्रों में साह गोत्र शाही गोत्र है। यह खण्डेला के महाराज खण्डेलगिरि का गोत्र है जो उन्हें जैन धर्म में दीक्षित करने तथा अहिंसा धर्म के परिपालन की प्रतिज्ञा लेने के पश्चात् दिया गया था। उन्हें खण्डेलवाल जैन जाति का प्रथम महापुरुष  होने तथा साह गोत्रीय कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे चौहान राजपूत थे। सोम उनका वंश था। खण्डेला उनका नगर एवं चक्रेश्वरी देवी उनकी कुल देवी थी। उनको विक्रम सम्वत् 102 में दीक्षित किया गया।

2.            पापडीवाल

       वंश सोम, कुल चौहान, कुल देवी चक्रेश्वरी, ग्राम पापडे (पापडदा)। कोई सूरजमाता को भी कुल देवी मानते हैं।

       सर्वप्रथम ठाकुर सोमसिंह जी ने संवत् 104 में श्रावक व्रत ग्रहण किये तत्पश्चात् उनके परिवार का गोत्र पापडीवाल रखा गया। इस गोत्र में कितनी ही महान् विभूतियाँ हुई।

3.           भांवसा (बडजात्या)

       खण्डेलवाल जैनों में भावंसा गोत्र अपनी जनसंख्या, सामाजिक एवं साहित्यिक सेवा के लिये पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त गोत्र है। भावंसा गोत्र के दूसरे नाम भौंसा, बडजात्या, गोदीका एवं मालावत हैं, जो स्थानीय कारणों से उस नाम के धारी बन गये हैं। इस गोत्र के प्रथम श्रावक भांवसिंह जी भावसे ग्राम के जागीरदार थे। सोमवंश था तथा चौहान कुल था। चक्रेश्वरी देवी इनकी कुल देवी मानी जाती है। भावंसा गोत्र होने के कारण जब इनको बोलचाल में भैंसा कहा जाने लगा तो इन्होने इसका प्रतिवाद किया और कहा कि वे राज परिवार के हैं। इसलिये उनकी जाति भी बडी है। इसके पश्चात् भांवसा गोत्र को बडजात्या भी कहा जाने लगा। संवत् 1052 में लाडनूं  में सोनपाल जी सौंठल जी बडजात्य ने पंच कल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न करायी थी।

       संवत् 1444 में धर्मचन्द भांवसा चाकसू वालों की बहू चांदवाडों की बेटी थी। इसने अपने लडके का लालन पालन शहर में आकर किया। इसलिये उनको गोदीका कहा जाने लगा। इसी तरह संवत् 1658 में संघई माला जी भावंसा बड़े पराक्रमी श्रावक हुए थे इसलिये उनके वंश को मालावत कहा जाने लगा। जयपुर में मालावतों के बहुत से परिवार हैं। जयपुर में बगडा भी भांवसा गोत्रीय हैं जबकि अन्यत्र कासलीवाल, लुहाडिया को बगडा कहा जाता है।

4.           पहाड्या / पहाडिया

       गोत्र पहाडिया / वंश सोम / कुल चौहान / कुलदेवी  चक्रेश्वरी ग्राम-पहाडी मूल पुरुष-पूरणचन्दजी अपर नाम पहाडसिंह जी। प्रतिष्ठा पाठ के अनुसार संवत् 182 में इस गोत्र के श्री पोखर जी पहाड्या ने खण्डेले में पंचकल्याणक प्रतिष्ठाचार्य भट्टारक यशकीर्ति थे।

5.           पांड्या

       गोत्र-पांड्या/ वंश-सोम/ कुल चौहान/ कुलदेवी-चक्रेश्वरी। ग्राम का नाम- झीवरै।

       पहिले इस गोत्र का नाम झीथरया था लेकिन बाद में यह केवल पांडया ही रह गया। इसका मूल कारण इस गोत्र की उत्पत्ति झीथरया ग्राम में हुई थी तथा इसके प्रथम पुरुष झाझाराम जी थे, जिन्होने संवत् 104 में आचार्य जिनसेन से श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

       संवत् 1211 में मारोठ के  शासक रामसिंह चंदेल थे। उनके पश्चात् महासिंह जी गौड ने सत्ता प्राई। उनके बाद रघुनाथ सिंह जी मेरक्या ने सत्ता प्राप्त की। इनके जाबूशाह जी पांड्या कामदार हुए। उनको शाह की पदवी दी गई। तब से मारोठ के पांड्या शाह पांड्या कहलाते हैं।

6.           छाबड़ा

         इस गोत्र का प्राचीन नाम छाबड़ा या साहबाडा भी मिलता है। प्रशस्तियों में भी छाबड़ा के स्थान पर साहबड़ा गोत्र का प्रयोग किया गया है। छाबडा गोत्र का वंश सोम, कुल चौहान, देवी चक्रेश्वरी, ग्राम का नाम सहाबड़ी है। इस गोत्र के मूल पुरुष का नाम साहिमल जी है।

7.           गदिया

         इस गोत्र का नाम गदैया एवं गदहया भी प्रसिद्ध है। इसका वंश सूर्य है, कुल सोलंकी, कुल देवी आमणि है। लेकिन क प्रति में इस गोत्र का वंश चौहान एवं कुल देवी चक्रेश्वरी दी गई है। यह गोत्र प्रथम 14 गोत्रों में सम्मिलित है। बुद्धि विलास में भी सोलंकी कुल एवं आमिणी देवी गिनायी गयी है। इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर राजसिमह है जिन्होने सर्वप्रथम श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे।

चूडीवाल एवं गिरधरवाल गोत्र भी इसी के दूसरे नाम है।

8.           चांदुवाड (चाँदवाढ)

         चांदुवाड गोत्र की उत्पत्ति चंदवाडू गांव से हुई। इस गोत्र का वंश चंदेल एवं कुलदेवी मातणि मानि गयी है। पं. बख्तराम ने अपने बुद्धि विलास में चांदुवाड गोत्र के दो भेद किये है। एक सोमवंशी एवं दूसरा कुरुवंशी। लेकिन मातणि कुलदेवी दोनों की एक ही है।

9.           सोनी

         सोनी गोत्रीय श्रावकों का वंश सोरई/सूर्य, कुल सोलंकी, कुलदेवी आमणि ग्राम सोहनै/सोनपुर एवं मूल पुरुष ठाकर जैतसिंह के पुत्र शिवसिंह माने जाते हैं जिन्होंने सर्व प्रथम श्रावक धर्म स्वीकार किया था।

           इस गोत्र का प्राचीन नाम सोहनी था लेकिन बाद में सोनी कहा जाने लगा।

10.     पाटनी

         गोत्र-पाटनी, वंश सोम, कुल तंवर सोलंकी/कुल देवी-आमणि। प्रथम पुरुष-पृथ्वीराजसिंह तंवर। बाहण बलध लादे तो दुखी होय गाय बेचे तो दुखी होय। ग्राम-पाटणि। पाटनी गोत्र-कोठारी, तुरक्या पाटनी, खिन्दूका, बेगस्या, सागाका, मुशरफ, इन्डिया बैंक वाले भी पाटनी हैं। वैसे पुर पट्टन से पाटनी गोत्र वाले कहलाते हैं।

           भाट के अनुसार पाटनी गोत्र के श्रावक देवी की पूजन अष्टमी से दशमी तक करते थे। देवी की सवारी सिंह की थी।

           खिन्दूका पाटनी गोत्र का ही दूसरा नाम है।

11.     भूंछ /भौंच

         इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर भोजराज थे जिन्होंने सर्वप्रथम श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

12-13. बज

         बज गोत्र का उत्पत्ति स्थान खण्डेला ही माना गया है तथा एक की कुल देवी आमणि तथा दूसरे को मोहाणी माना गयी है।

14. निगोत्या

           गोत्र निगोत्या/ वंश गौड/ जन्म ग्राम-निगोत्या/ कुल देवी नांदणि। ख प्रति में इस गोत्र का वंश छपा मिलता है। ग प्रति में चौहाण वंश मिलता है। बुद्धि विलास में निगोत्या गोत्र की कुल देवी हेमा मानी गयी है।

15. लौंहग्या

           गोत्र लौंहग्या, लोंग्या अथवा लुंग्या। ये सूर्य वंशी (सोरई) हैं। कुल देवी आमणि एवं उत्पत्ति स्थान लहुंगे माना जाता है। ख प्रति में इस गोत्र का सोलंकी वंश बतलाया गया है। बुद्धि विलास में भी इसी मत की पुष्टि की गयी है।

16. दगड़ा/ दगड्या

           गोत्र दगड्या अथवा दगडा /वंश सोरई /कुल देवी आमणि। उत्पत्ति स्थान दगडोदे।

17. रावत्या रावत

           रावत्या अथवा रावत गोत्रीय श्रावकों का वंश ठीमर सोम, ग्राम रावत्ये एवं कुल देवी औरल है। रावत गोत्र के सम्बन्ध में कोई अन्य सामग्री नहीं मिलती। ख प्रति में इस गोत्र का पामेचा वंश माना है।

18. रारा

           रारा गोत्र/ वंश ठीमर सोम/ ग्राम रीरो/ कुल देवी औरल।

           ख प्रति में बख्तराम साह ने रारा गोत्र का पामेचा वंश माना है।

           रारा गोत्र के मूल पुरुष राजसिंह जी थे।

19. नृपत्या /वरपत्या

         वंश सोम/ कुल सोरई /कुल देवी आमणि /ग्राम नरपते। मूल पुरुष हरिसिंह जी।

           ख प्रति के अनुसार इस गोत्र का वंश यादव, कुल देवी रोहिणी है। इस गोत्र में सर्वप्रथम संवत् 110 में हरिसिंहजी ने श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

20. राउंका रांवका

         गोत्र रांवका/ कुल ठीमर सोम /कुल देवी औरलि।

           उत्पत्ति नगर राउंको /रीरो।

21. मोदी

         वंश सोम, कुल ठीमर सोम, ग्राम का नामा मोघा, कुल देवी अमरलि।

22. मोठ्या

           वंश ठीमर ग्राम मोठे देवी औरलि।

23. बाकलीवाल

           गोत्र बाकलीवाल, वंश मोहिल, कुल देवी जीणि, उत्पत्ति नगर बाकली अथवा बाकुले।

24. कासलीवाल

           कासलीवाल गोत्र का वंश सोम है। कुल मोहिल है। कुल देवी जिणि एवं उत्पत्ति नगर कासली है जो खंडेला राज्य का ग्राम था। कहीं-कहीं बगडा, संबलावत उस गोत्र के उपगोत्र हैं। इस गोत्र के प्रथम पुरुष जयसराज मोहिल थे जिन्हें कासली ग्राम के शासक एवं जैन धर्म में दीक्षित होने का गौरव प्राप्त है।

25. अजमेरा

         गोत्र-अजमेरा/उत्पत्ति स्थान अजमेरा/वंश-गौड/कुलदेवी-नांदाणि/मूलपुरुष उग्रवंशी राजा अक्षयमल।

26. पाटोदी                              

         गोत्र-पाटोदी/वंश तुवंर/कुल-गहलोत/कुलदेवी-पदमावती/प्रथम पुरुष-ठाकुर पदमसिंह।

27. पापल्या

         गोत्र-पापल्या/वंश-सोरई/कुलदेवी-आमणि/ग्राम-पापले मूल पुरुष ठाकुर पृथ्वीराज /जनश्रुति के अनुसार इन्ही के वंशधरों ने बैराठ में जिन मन्दिर का निर्माण करवायक था।

28. सोगानी

         गोत्र-सोगानी/वंश-सूर्यवंश-कोटेचा/कुलदेवी-कान्हड/ग्राम-सौगाणी/ मूल पुरुष ठाकुर शिवाराज सिंह।

29. बोहरा

         गोत्र बोहरा, वंश सोढा, कुल देवी सैतलि, ग्राम बोहरे।

30. लुहाडिया

         गोत्र लुहाडिया, कुरु वंश, कुल मेरठी, कुल देवी लोसिल माता।

           इस गोत्र के बगडा एवं संघई बैंक वाले भी लुहाडिया होते हैं। इस गोत्र के प्रथम महापुरुष ठाकुर लालसिंह जी थे जिन्होंने खण्डेला में संवत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किया था।

31. वैद गोत्र

         वैद गोत्र, वंश सोम, कुल यादव, कुल देवी आमणि, ग्राम पावडे।

           इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर बिदरसिंह जी थे। जिन्होने संवत् 110 वैशाख सुदी 13 को श्रावक व्रत ग्रहण किया था।

32. झांझरी

         झांझरी गोत्र, वंश-कुरु वंश, कुल-कूरम (कछवाहा), कुल देवी जमवाय, ग्राम झांझरे अथवा झींझर।

           इस गोत्र के प्रथम जैतसिंह थे। जिन्होंने संवत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

33. गंगवाल

         गोत्र गंगवाल, वश-कुरु वंश, कुलृकूरम(कछवाहा), कुल देवी जमवाय, ग्राम गंगवानी।

           अपर नाम-कांटीवाल, मूथा, गढवोल गंगवाल।

           मूल पुरुष—गोरधनसिंह गंगवानी इस गोत्र के प्रथम महापुरुष थे। इन्होने संवत् 110 के भादवा सुदी 13 को श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

34. सेठी

         गोत्र सेठी, वंश-कुरु वंश, कुल-मोरठ सोम, उत्पत्ति स्थान-सेठोलाव।

           सेठी गोत्र के मूल पुरुष सौभाग्यसिंह जी थे जो हरियावसिंह जी के पुत्र थे। जिन्होंने श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

35. राजहंस्या

         इस गोत्र का नाम राजहंस भी मिलता है। इसका सोम वंश है। कुल सोढा है। कुल देवी सकराय माता है। उत्पत्ति स्थान राजहंस ग्राम है।

36. अहंकारया

         अहंकारया गोत्र का वंश सोम है। कुल सोढा है। कुल देवी सकराय है। दूसरे इतिहास लेखकों ने इस गोत्र की कुल देवी सरस्वती  माना है।

37. काला

         गोत्र काला, वंश-कुरु वंश, कुल-ठीमर, कुल-देवी लाहाणी, ग्राम कोलाव।

           इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर कल्याणसिंह जी थे। इन्होंने जिनसेनचार्य के पास श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

38. गोधा

         गोत्र-गोधा, वंश-सोम, कुल-गौड, कुल देवी-नादणि, ग्राम-गोधाणी।

           इस गोत्र के मूल पुरुष ठाकुर गिरनेर थे। जिन्होंने सर्वप्रथम श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

           सम्वत् 1204 से गोधा ठोल्या एक ही गोत्र के दो नाम पड़ गये।

39. टोंग्या

         गोत्र-टोंग्या, वंश-सोम, कुल-पवार, कुल देवी-चांवड (जिनी), ग्राम-टोंगों। मूल पुरुष विरदसिंह। इन्होने सम्वत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किये।

40. अनोपडा

         गोत्र-अनोपडा, वंश-इक्ष्वाकु, कुल-चन्देला, कुल देवी-मातणि, ग्राम-अनोपडे, मूल पुरुष कनकसिंह जी। इस गोत्र का दूसरा नाम नोपडा भी मिलता है।

41. विनायक्या

         इस गोत्र के विनायक्या एवं बिन्दाय्या दोनें ही नाम मिलते हैं। इस गोत्र का वंश सोम वंश है। कुल गहलोत एवं कुल देवी चौथ है। ग्राम विनायका/ विनायके है।

42. चौधरी

         84 गोत्रों में चौधरी भी एक गोत्र है। वैसे चौधरी बैंक भी है। चौधरी गोत्र का कुल-तुवंर, वंश-कुरु, कुल देवी-पदमावती। आदि पुरुष ठाकुर हरचन्द जी थे।

43. पोटल्या

         गोत्र पोटल्या, वंश सोम, कुल गहलोत, कुल देवी चौथी, ग्राम चन्देल। मूल पुरुष रामसिंह थे। इन्होने संवत् 110 में श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

44. कटारिया / कटारया

         वंश-इक्ष्वाकु, कुल-कूर्म(कछवाहा), कुल देवी-जमवाय, ग्राम-कटारा। मूल पुरुष ठाकुर कल्याणसिंह जी है। न्होनें श्रावक व्रत ग्रहण किये ते।

45. निगद्या

         गोत्र निगद्या अथवा निगेदिया। वंश-सोरई। कुलदेवी नांदणि। उत्पत्ति स्थान नगद्या। ख प्रति में इस गोत्र का वंश गौड माना गया है।

46-47. विलाला

         विलाला गोत्र दो प्रकार का है-

1.   सोम वंश, किल ठीमर, देवी-ओरलि, ग्राम-बडी विलाली।

2.   कुरु वंशी, कुल देवी-सोनिल, ग्राम-विलाली छोटी, मूल पुरुष ठाकुर वीरसिंह।

48. बम्ब

           गोत्र-बम्ब, इस गोत्र का सोम वंश, सोढा कुल एवं कुल देवी-सकराय है।

49.  हलद्या / हलदेनिया

         इस गोत्र का प्रचलित नाम हलदेनिया है। ये सोमवंशी हैं। कुल मोहिल एवं  कुल देवी जीण है।

50. क्षेत्रपाल्या

         गोत्र-श्रेत्रपाल्या अथवा श्रेत्रपालिया, सोम वंश, दुजि कुल एवं कुल देवी हेमा है। इस गोत्र के भी बहुल कम परिवार मिलते हैं।

51. दुकड्या                                                                                

         यह गोत्र भी 84 गोत्रों में है। इस गोत्र की कुल देवी हेमा है। वंश दुजिल एवं ग्राम का नाम द्कडे है।

52. दोशी

         दोशी गोत्र का वंश राठौड़ है। कुल देवी जमवाय तथा उत्पत्ति स्थान सेसेणि नगर माना जाता है। इस गोत्र के नाथूराम दोशी हुए।

53. भसावड़या

         भसावड्या कुरु वंशी गोत्र है। इसकी कुल देवी सोनिल है तथा मूल नगर भसावड है।

54. भांगड्या

         भांगड्या गोत्र भी प्रचलित गौत्र नही हैं। इसका वंश ठीमर तथा कुल देवी ओरल है। भांगडे नगर इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है।

55. भूवाल

         भूवाल गोत्र का कछवाहा वंश है। जमवाय इसकी कुल देवी है तथा भूवाल इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है।

56. सरवाड्या

         गौड वंश का सरावाड्या गोत्र है। इसकी कुल देवी नादणि है तथा उत्पत्ति स्थान सरवाडे है।

57. गोतवंशी

         यह गोत्र भी 84 गोत्रों में से एक गोत्र है। इस गोत्र का दुजिल वंश है। हेमां कुल देवी है तथा गोतडी नामक ग्राम इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है। लेकिन बख्तराम साह ने इस प्रकार के किसी  गोत्र का उल्लेख नहीं किया है।

58. चोवारया

         प्रस्तुत गोत्र को 84 गोत्रों में गिनाया गया है। इस गोत्र का चौहान वंश, चक्रेश्वरी देवी एवं चौबारे उत्पत्ति स्थान है। बख्तराम साह ने इस गोत्र को 84 गोत्रों में नहीं गिनाया है।

59. गींदोड्या

         इस गोत्र की उत्पत्ति स्थान गिन्दोडी है। इसकी कुल देवी श्रीदेवी है। इसका सोढा वंश माना जाता है। गींदोड्या गोत्र के परिवार राजस्थान अथवा अन्य किसी प्रदेश में रहते हों इसका जानकारी नही मिलती।

60. छाहड

           इस गोत्र का नांदेचा कुल है। कुरु वंश है। देवी सोनिल तथा उत्पत्ति ग्राम छाहेड माना जाता है।

61. कोकराज

         इस गोत्र का नांदेचा कुल है। कुरु वंश का यह गोत्र है तथा इस गोत्र की देवी सोनिल है। इसका उत्पत्ति स्थान कोकरजे है। इस गोक्ष के परिवार भी सम्भवतः नहीं है। श्री राजमल बडजात्या ने इस गोत्र का नाम कोकणराज्या लिखा है।

62. जुगराज्या

         उत्पत्ति नगर जगराजै को छोड़ कर कुल वंश एवं कुलदेवी वे ही हैं जो कोकराज गोत्र की मानी जाती है।

63. मूलराज

         इस गोत्र के कुल का नाम मोहिल है। कुरु वंश है। सोनिल कुल देवी है तथा उत्पत्ति स्थान मूलराज्ये है। बख्तराम साह भी उक्त मत के समर्थक है।

64. लटीवाल

         इस गोत्र के कुल का नाम मोहिल है। कुल देवी का नाम श्रीदेवी एवं सोढा इस गोत्र का वंश है। लटवे इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है।

65. बोरखण्डया

         इस गोत्र की कुल देवी हेमा मानी गयी है। इसका वंश दुजिल है। इसका गहलोत कुल माना है तथा उत्पत्ति स्थान बोरखण्डे है।

66. कुलभण्या

         इस गोत्र की कुल देवी हेमा है। इसका दुजिल वंश तथा कुलभण्ये उत्पत्ति स्थान का नाम है। इस गोत्र के परिवार भी प्रायः नही मिलते है।

67. मोलसरया

         यह सोढा वंशीय गोत्र है। कुल देवी का नाम सकराय है तथा उत्पति स्थान मलसरे है। बख्तराम साह ने इस गोत्र का चन्देल वंश तथा कुल देवी का नाम मातणि लिखा है।

68. लोहट

         इस गोत्र का नाम लावट भी मिलता है। बख्तराम साह ने भी लावट नाम लिखा है। इस गोत्र का मेरिठ वंश का नाम है तथा कुल देवी लोसिल माता है। उत्पत्ति स्थान लोहटे लिखा है.

69. नरपोल्या

         नरपोल्या गोत्र का वंश गौड है। कुलदेवी नांदणि है तथा उत्पत्ति स्थान नरपोले है। बख्तराम साह ने इस गोत्र के कुल का नाम दहरया लिखा है।

           नरपोल्या निरगंधा गोत, कुल है दहरया और नहि होत।

70. भडसाली

         इस गोत्र की कुलदेवी का नाम आमणि है। इसका सोम वंश है। सोलंकी कुल का नाम है। उत्पत्ति नगर का नाम भडसाले है। इस गोत्र के सम्बन्ध में इतिहास लेखक एक मत नही है। घ प्रति में इस गोत्र को भडसाली बज लिखा है तथा इसको बज गोत्र से जोडा है लेकिन बख्तराम साह ने इस गोत्र की यादव कुल, रोहिणी कुलदेवी माना है।

71. वैनाडा

         गोत्र-वैनाडा। वंश-ठीमर। कुलदेवी ओरल। उत्पत्ति स्थान-बनावट।

           इस गोत्र का उल्लेख सभी इतिहासकारों ने  नहो किया है। लेकिन दौसा के बीसपंथी मन्दिर में एक नंदीश्वर की धातु की मूर्ति है जो संवत् 1660 फागुन बुदी 5 गुरुवार के दिन माखूण में वैनाडा गोलीय सा भोजा उसके पुत्र ऊदा, तुपुत्र हेमा, नागा चाला, सांवल राम, दामोदर माता ठाकुरी दादी रुकमा ने उसकी प्रतिष्ठा की थी।

           वैनाडा गोत्रीय परिवार जयपुर, आगरा, लालसेट आदि नगरों में मिलते हैं।

72. कडवागर

         इस गोत्र का उत्पत्ति नगर कडवागरी है। इसका वंश सोम है कुल गौड है तथा कुलदेवी का नाम नांदणी है। बख्तराम साह ने कुलदेवी का नाम नांदिल लिखा है तथा कुल का नाम पडिहार माना है।

73. सृपत्या

         इस गोत्र का नाम सरपत्या एवं सुरपत्या भी मिलता है। इस गोत्र का मोहिल कुल है तथा कुल देवी जीणि माता है। इसका उत्पत्ति स्थान सुरपति नगर है। इस गोत्र के परिवारों के बारे में कोई जानकारी नही मिलती है।

74. दरडोद्या

         गोत्र दरडोद्या, वंश सोम, कुल चौहान, कुल देवी चक्रेश्वरी ग्राम-दरडे, मूल पुरुष राजा दमतारिजी।

75. पिंगुल्या

         गोत्र पिंगुल्या, वंश-सोम, कुल चौहान, कुलदेवी-चक्रेश्वरी, ग्राम का नाम-पिंगुल।

76. भुलाण्यां

         गोत्र-भुलाण्यां, भुलणा, वंश-सोम, कुल चौहान, कुलदेवी-चक्रेश्वरी, ग्राम का नाम-भूलणा।

           इस गोत्र के प्रथम पुरुष भूघरमल जी थे। जो भूलणा ग्राम के ठाकुर थे।

77. वनमाली

         इसका दूसरा नाम वनमाल्या भी मिलता है। क, ग, एवं घ प्रति में इस गोत्र के वंश का नाम चौहान एवं कुल देवी चक्रेश्वरी दिया हुआ है। इस गोत्र का उदगम बनमाले ग्राम से हुआ था। ख प्रति से इस वंश का गोत्र यादव एवं कुल देवी रोहिणी लिखा है। पं. बख्तराम साह ने भी वनमाली गोत्र का यादव कुल एवं रोहिणी देवी लिखा है।

78. पीतल्या

         गोत्र-पीतल्या, वंश-सोम, कुल चौहाण, कुल देवी चक्रेश्वरी ग्राम का नाम-पीतले। पं. बख्तराम ने बुद्ध विलास में इसी बात का समर्थन किया है।

79. अरडक

         अरडक गोत्र की गिनती प्रारम्भ के 14 गोत्रों में की गयी है। इसका वंश सोम, कुल चौहान, कुलदेवी चक्रेश्वरी है। ख प्रति में इस गोत्र के इतिहास में इस गोत्र के मूल पुरुष का नाम श्री अजबसिंह जी गिनाया गया है। साथ में यह भी लिखा है कि (आठे चौदासि चाकी फरेजे नहीं। चाकी को अपमान करे नही।)

80. चिरकन्या / चिरकनां

         यह गोत्र आचार्य जिनसेन द्वारा निर्धारित 14 गोत्रों में से अन्तिम गोत्र माना गया है। इसके कुल वंश, देवी वही है जो इस समूह के अन्य गोत्रों की है। लेकिन बुद्धिविलास में चिरकन्या गोत्र की गिनती इक्ष्वाकु वंश में की गयी है और चक्रेश्वरी के स्थान पर नांदिल देवी को इस गोत्र की देवी बतलाया है।

81. जलवाण्या

         वंश-सोम/कुल-कुछवाहा/नगर-जलवाणे/जलभणे कुलदेवी-जमवाय। इस गोत्र का दूसरा नाम जलभाण्या भी मिलता है। इस गोत्र के परिवार भी संभवत/ कहीं नहीं मिलते हैं।

82. सांभरया

         वंश-सोम/कुल-चौहान/नगर-सांभरि/देवी-चक्रेशवरी/ जोबनेर के  मंदिर वाली पाण्डुलिपि में कुलदेवी का नाम सांभराय लिखा है। यदि प्रस्तुत सांभर ही इस गोत्र का उत्पत्ति स्थान है तो इससे इतिहास के कितने ही अध खुले पृष्ट खुल जावेंगे तथा खण्डेला की सीमा सांभर तक आ जावेगी।

83. राजभद्र

         गोत्र-राजभद्र/ वंश-सोम/कुल-चौहाण/ नगर-स्थान राजभद्र/ कुलदेवी-चक्रेश्नरी/ प्रथम पुरुष-रामसिंह।

84. साखूया

         गोत्र-साखूण्या। वेश-सोढा। उत्पत्ति स्थान साखूणौ अथवा साखूणि। कुलदेवी सकराय। ख प्रति के अनुसार इस गोत्र केवेश का नाम सांखुला है। भाट के अनुसार इस गोत्र की कुल देवी आमना है। इस गोत्र के प्रथम पुरुष ठाकुर श्याम सिंह जी माने जाते है जिन्होनें संवत् 990 में श्रावक व्रत ग्रहण किये थे।

84 गोत्रों के अतिरिक्त गोत्र

         उक्त 84 गोत्रों के अतिरिक्त, खण्डेलवाल जैन समाज के ही निम्न गोत्रों का उल्लेख ग्रंथ प्रशस्तियों, मूर्ति लेखों में और मिलता है-

        साधु   साधु गोत्र, ठाकुल्यावाल, मेलूका, नायक, खाटड्या, सरस्वती, कुककुरा, वोठवोड, कोटरावकल, भतावड्या, बीजुण, कांधावाल, रिन्धिया एवं सांगरिया

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